‘जंगलों की आग की कैसी भयावह तस्वीरें आ रही हैं’, सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- राज्य सरकार क्या कर रही है?

नई दिल्ली। उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग के मामले को लेकर जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच में सुनवाई हुई. याचिकाकर्ता के वकील ने आग की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताते हुए सरकार से इन पर तुरंत अंकुश लगाने का आदेश जारी करने की अपील की. उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं को लेकर उन्होंने दो साल पहले एनजीटी में याचिका दायर की थी. अभी तक सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की है. इसलिए मुझे यहां आना पड़ा.’ याचिका दायर करने वाले शख्स ने कहा कि जंगलों की आग पूरे भारत में एक समस्या है. इसका खामियाजा उत्तराखंड को अधिक भुगतना पड़ रहा है।

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि कब जंगल में आग लगती है और आग बुझने के बाद भूमि का उपयोग कैसे बदला जाता है. इस मामले की अगली सुनवाई अगले गुरुवार 16 मई को होगी. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से कहा कि आपने देखा होगा कि मीडिया में जंगल की आग की कितनी भयावह तस्वीरें आ रही हैं. इस मामले में राज्य सरकार क्या कर रही है?

उत्तराखंड सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को राज्य में भीषण जंगल की आग पर काबू पाने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी दी। राज्य सरकार ने कहा कि आग की घटना से राज्य का केवल 0.1 प्रतिशत वन्यजीव क्षेत्र प्रभावित हुआ है. राज्य सरकार ने न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ को बताया कि पिछले साल नवंबर से राज्य में जंगल की आग की 398 घटनाएं हुई हैं और ये सभी मनुष्यों के कारण हुईं।

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राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों पर प्रकाश डालने के अलावा, पीठ को यह भी बताया कि जंगल की आग के संबंध में 350 आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं और उनमें 62 लोगों को नामित किया गया है। वकील ने कहा, ‘लोग कहते हैं कि उत्तराखंड का 40 फीसदी हिस्सा जल रहा है, जबकि इस पहाड़ी राज्य में सिर्फ 0.1 फीसदी वन्यजीव क्षेत्र ही आग की चपेट में है.’ वकील ने सुप्रीम कोर्ट की बेंच के सामने अंतरिम स्टेटस रिपोर्ट भी पेश की. सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि ‘क्लाउड सीडिंग’ (कृत्रिम बारिश) या ‘भगवान इंद्र पर निर्भर रहना’ मुद्दे का समाधान नहीं है और राज्य को जंगल की आग को रोकने के लिए उपाय करने होंगे.

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